Wednesday, September 2, 2009

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आरंभ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड
आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो.
आन बान शान या कि जान का हो दान,
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो...
आरम्भ है प्रचंड .......

मन करे सो प्राण ले, जो मन करे सो प्राण दे,
वही तो एक सर्व शक्तिमान है !
विश्व की पुकार है,ये भागवत का सार है,
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!
कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीड़ हो,
जो लड़ सका है वो ही तो महान है !!!

जीत की हवस नहीं, किसीपे कोई वश नहीं
क्या जिंदगी है, ठोकरों पे मार दो....
मौत अंत है नहीं, तो मौत से भी क्यों डरें
ये जाके आसमान में दहाड़ दो.....
आरंभ है प्रचंड..................


हो दया का भाव याकि शौर्य का चुनाव,
याकि हार का वो घाव तुम ये सोच लो !
याकि पुरे भाल पर जला रहे विजय का लाल,
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो !!
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो याकि,
केसरी हो ताल तुम ये सोच लो !!!

जिस कवी की कल्पना में जिंदगी हो प्रेमगीत
उस कवी को आज तुम नकार दो...
भीगती नसों में आज, फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो......
आरम्भ है प्रचंड..


सुरुवात तर झाली एकदाची